Friday, March 13, 2009

मेट्रो मज़दूरों के जनतांत्रिक व श्रम अधिकारों के दमन के खिलाफ़ आवाज़ उठायें!

जनतान्त्रिक मूल्यों में यक़ीन रखने वाले सभी नागरिकों के नाम एक अपील

दोस्तो!

हम सभी दिल्ली मेट्रो को दिल्ली की शान समझते हैं। जगमगाती, चमकदार, उन्नत तकनोलॉजी से लैस मेट्रो को देखकर कोई भी दिल्लीवासी फूला नहीं समाता। दिल्ली मेट्रो को सरकार और मीडिया भी दिल्ली के गौरव के रूप में पेश करते हैं। इसके आने के बाद एक 'ग्लोबल सिटी' के रूप में दिल्ली का दावा और भी मज़बूत हो गया है। इसके प्रबन्धन की सरकार और मीडिया तारीफ़ करते नहीं थकते। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि इस उन्नत, आरामदेह और विश्व-स्तरीय परिवहन सेवा के निर्माण से लेकर उसे चलाने और उसकी जगमगाहट को कायम रखने वाले मज़दूरों के जीवन में कैसा अन्धकार व्याप्त है। पूरा दिल्ली मेट्रो मज़दूरों के खून-पसीने और हड्डियों की नींव पर खड़ा किया गया है और इसके बदले में मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी, साप्ताहिक छुट्टी, पी.एफ़, ई.एस.आई. और यूनियन बनाने के अधिकार जैसे बुनियादी हक़ों से भी वंचित रखा गया है। श्रम क़ानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं, हालाँकि मेट्रो स्टेशनों और डिपो के बाहर मेट्रो प्रशासन ने एक बोर्ड ज़रूर लटका दिया है कि 'यहाँ सभी श्रम कानून लागू किये जाते हैं'। लेकिन मेट्रो में काम करने वाले ठेका व अस्थायी मज़दूरों के लिए यह एक मज़ाक से अधिक कुछ भी नहीं है। चाहे वे मेट्रो के सफ़ाई कर्मचारी हों जो मेट्रो की चमक-दमक को कायम रखते हैं या फि‍र मेट्रो के जगमगाते स्टेशनों, रेल लाइनों और मेट्रो मॉल्स को बनाने वाले निर्माण मज़दूर हों, सभी को न्यूनतम मज़दूरी से बेहद कम मज़दूरी पर काम करना पड़ता है और उन्हें क़ानूनन मिलने वाली सुविधाओं में से कुछ भी नहीं मिलता।

इस नंगे शोषण के ख़िलाफ जब मेट्रो के कर्मचारियों के बीच से विरोध की आवाज़ उठनी शुरू हुई है तो मेट्रो का प्रशासन उनकी ज़ुबान बन्द करने पर आमादा हो गया है। गत 4 फरवरी को मेट्रो प्रशासन ने अपने कर्मचारियों के नाम 'कोड ऑफ वैल्यू एण्ड एथिक्स' नाम से एक सर्कुलर जारी करके उन्हें उनके सभी बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया है। इस सर्कुलर में मज़दूरों व कर्मचारियों से स्पष्टत: कहा गया है कि वे किसी भी अन्य सरकारी विभाग में मेट्रो प्रशासन की शिकायत नहीं कर सकते हैं। वे मेट्रो में चल रहे किसी भी अन्याय या धाँधली के ख़िलाफ़ मीडिया को जानकारी नहीं दे सकते हैं। अपने साथ होने वाले किसी अन्याय के ख़िलाफ अदालत का दरवाज़ा खटखटाने पर भी मनाही है और अगर अदालत में जाना ही हो तो पहले डी.एम.आर.सी. से अनुमति लेनी होगी। कोई भी अन्याय, भ्रष्टाचार या गड़बड़ी होने पर कर्मचारी के पास सिर्फ़ यह अधिकार होगा कि वह डी.एम.आर.सी. के सतर्कता विभाग में शिकायत कर सके। यानी मेट्रो प्रशासन के ख़िलाफ मेट्रो प्रशासन से ही शिकायत करनी होगी! यानी गवाह भी मेट्रो प्रशासन, वकील भी मेट्रो प्रशासन और जज भी मेट्रो प्रशासन! ऐसे में मज़दूरों के साथ होने वाले अन्याय पर क्या न्याय होगा यह खुद ही समझा जा सकता है। यानी, कर्मचारी न मीडिया में जा सकता है, न ही वह किसी उपयुक्त सरकारी विभाग में शिकायत कर सकता है, और सबसे बड़ी बात कि वह न्याय पाने के लिए न्यायालय में भी नहीं जा सकता है।

इसके पहले से ही, डी.एम.आर.सी. इस बात पर अड़ा हुआ है कि वह किसी भी यूनियन को मान्यता नहीं देगा और इसके लिए कारण बताया गया है कि अनुशासन बरकरार रखने के लिए यह आवश्यक है। लेकिन भारतीय कानून और संविधान हर उपक्रम के मज़दूरों को यूनियन बनाने और संगठित होने का अधिकार देता है और इस अधिकार को डी.एम.आर.सी. नहीं छीन सकता है।

स्पष्ट है कि यह एक फासीवादी सर्कुलर है जिसका मकसद मज़दूरों को गुलाम और काम करने वाली मशीन बना देना है। मेट्रो प्रबन्धन के ख़िलाफ़ कोई मज़दूर आवाज़ नहीं उठा सकता है। अगर उसे मेट्रो प्रबन्धन की निष्पक्षता पर यकीन न हो तो वह कहीं नहीं जा सकता क्योंकि उसके न्यायालय जाने पर भी रोक लगा दी गई है। अपने अधिकारों के वास्ते संघर्ष के लिए उसके एकजुट होने और यूनियन बनाने पर भी रोक है। यह मामला सिर्फ़ श्रमिक अधिकारों का नहीं है। हर श्रमिक एक नागरिक भी होता है। और इस नये सर्कुलर में मेट्रो प्रशासन ने हर उस अधिकार को छीन लिया है जिसका वह एक नागरिक के रूप में हक़दार है। न्यायालय में जाने से रोक लगाने का निर्देश ही असंवैधानिक है क्योंकि यह एक नागरिक को प्राकृतिक न्याय के उसके अधिकार से वंचित करता है। यूनियन बनाने से रोकने या उसे मान्यता न देने का मेट्रो का निर्णय भी ग़ैर-क़ानूनी है क्योंकि क़ानूनन यह हर उपक्रम के मज़दूरों का हक़ है। मेट्रो में चल रहे अन्याय या भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ किसी ऐसे सरकारी विभाग में जाने पर भी रोक लगा दी गई है जो ऐसी शिकायतों को सुनने का अधिकार रखता है। ग़ौरतलब है कि यह रोक भी ग़ैर-क़ानूनी है क्योंकि यह उन सभी सरकारी विभागों के औचित्य और अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करता है जिनका काम ही श्रमिकों की शिकायतों को सुनना और औद्योगिक विवादों का निपटारा है, मिसाल के तौर पर, श्रमायुक्त कार्यालय। ऐसे में सरकार बताये कि ये कार्यालय किसलिए हैं?

कुल मिलाकर भारतीय संविधान और क़ानून के मानदण्डों पर ही मेट्रो का यह सर्कुलर असंवैधानिक और ग़ैर-क़ानूनी है। हम पुरज़ोर शब्दों में इस सर्कुलर का विरोध करते हैं और मेट्रो प्रशासन से माँग करते हैं कि इस सर्कुलर को तत्काल वापस लिया जाये और आधिाकारिक रूप से क्षमा माँगी जाय। यह पूरा सर्कुलर फासीवादी है और मज़दूरों को उनके सभी श्रम अधिकारों, जनवादी अधिकारों और नागरिक अधिकारों से वंचित करता है। इस सर्कुलर में मज़दूरों को उनके निजी जीवन की नैतिकता पर भी उपदेश दिया गया है और आदेश देकर बताया गया है कि वे निजी जीवन में क्या करें और क्या नहीं। यह भी एक नागरिक के निजी जीवन में अवांछित हस्तक्षेप है। ज़ाहिर है कि पूरी भाषा ही फासीवादी दौर के जर्मनी और इटली की याद दिलाती है जिसमें मज़दूरों के जीवन के हरेक पहलू को नियंत्रित किया जाता था और उनके हर अधिकार को कुचल दिया जाता था। मेट्रो प्रबन्धन भी उन्हीं फासीवादियों के पद-चिन्हों पर चलने का प्रयास कर रहा है। हम उसे याद दिलाना चाहेंगे कि इतिहास में ऐसे फासीवादियों का क्या हश्र हुआ।

हम सभी इंसाफ़पसन्द, जनतंत्र-प्रिय, जनपक्षधर और आज़ादीपसन्द नागरिकों से अपील करते हैं कि मेट्रो प्रशासन के इस फासीवादी और मज़दूर विरोधी क़दम के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायें। आम तौर पर जनतांत्रिक होने का अर्थ सिर्फ़ अपने जनतान्त्रिक अधिकारों के प्रति सचेत और संवेदनशील होना माना जाता है। लेकिन जनतांत्रिक मूल्यों और विचारों में यकीन करने का अर्थ तो किसी भी जगह, किसी के भी जनतांत्रिक अधिकारों के हनन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना है। यदि हम सच्चे जनवादी हैं, यदि हम वाकई न्यायप्रिय हैं, यदि आज़ादी से प्यार करने के हमारे दावे और हमारी बातें खोखली और पाखण्ड मात्र नहीं हैं, तो हमें मेट्रो के मज़दूरों पर हो रहे इस फासीवादी अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिए। हम ऐसे सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि वे हमारे साथ आयें और हमारी आवाज़ को इतना बुलन्द करने में हमारी मदद करें कि वह मेट्रो प्रशासन और सरकार के कानों तक पहुँच जाये।

आप क्या कर सकते हैं?

- आप हमारे पते पर हमसे मिलकर, या फोन/ईमेल से सम्पर्क करके मेट्रोकर्मी अधिकार रक्षा मंच से जुड़ सकते हैं।

- आप हमारे पते पर या हमारे ई-मेल पते पर हमें समर्थन-पत्रा भेज सकते हैं।

- आप हमारे ब्लॉग पर अपना समर्थन दर्ज करा सकते हैं।

- आप सीधे डी.एम.आर.सी. के सी.एम.डी., दिल्ली की मुख्यमन्त्री और केन्द्रीय श्रम मन्त्री को पत्र/फैक्स/ईमेल द्वारा इस सर्कुलर के प्रति अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं। इन सबके पते/ईमेल/फैक्स नंबर के ब्योरे नीचे ब्लॉग पर दिये गये हैं।

हमें पूरा यकीन है कि जनतांत्रिक मूल्यों में यक़ीन रखने वाले नागरिकों की कोई कमी नहीं है और वे सभी इस मुद्दे पर हमारे साथ आयेंगे। यही वक्त है कि हम आवाज़ उठायें और अगर हम आज आवाज़ नहीं उठाते तो कल हमारे लिए भी कोई नहीं बोलेगा। जनतांत्रिक अधिकारों के हनन का यह सिलसिला सिर्फ मज़दूरों तक ही नहीं रुकने वाला है। आज वैश्विक मन्दी के दौर में राजनीतिक जनवाद और अधिकारों का तेज़ी से क्षरण हो रहा है और जल्द ही मध्यवर्ग के तमाम दायरे भी इसकी चपेट में आयेंगे। ऐसे में हमें अभी से ही जनता के जनवादी अधिकारों पर हमलों से निपटने की तैयारी करनी होगी। आज वे मज़दूरों के लिए आ रहे हैं, स्त्रियों के लिए आ रहे हैं, ट्रेड यूनियन वालों के लिए आ रहे हैं, सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए आ रहे हैं, और अगर ऐसे में हम कुछ नहीं बोलते तो कल जब वे हमारे लिए आयेंगे तो हमारे लिए बोलने के लिए कोई नहीं बचेगा।

मेट्रो कर्मी अधिकार रक्षा मंच

In Defence of Metro Workers' Rights

ईमेल: metroworkersrights@gmail.com

ब्लॉग: idmwr.blogspot.com (English)

idmwr-h.blogspot.com (हिन्दी)

फोन: 9999379381, 9910462009, 9891993332, 9711968231, 9873040985, 9211662298

पता: सन्दीप, ए-3/78, सेकेण्ड फ्लोर, सेक्टर-17, रोहिणी, दिल्ली-110085

इस मंच में शामिल हैं:

जागरूक नागरिक मंच, नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता, दिशा छात्र संगठन, स्त्री मुक्ति लीग, बादाम मज़दूर यूनियन, राहुल फाउंडेशन, हण्ड्रेड फ्लावर्स स्टडी ग्रुप, देहाती मज़दूर यूनियन, दायित्वबोध मंच, व अन्य सरोकारी नागरिक।